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गड्ड-मड्ड-सड्ड

सभी तस्वीरें: गौरव तिवारी इनको सोशल डिस्टेंसिंग जैसी किसी चीज से कोई मतलब नहीं है। बिना चप्पल-जूता झाड़-झंकाल में घुसे हैं। आप ही अंदाजा लगाइए कितनी साफ-सफाई रखते होंगे? सेनेटाइजिंग दूर का विषय है, साबुन से कितनी बार हाथ धुलते होंगे? ऐसा इसलिये है, क्योंकि इनके माँ-बाप को भी इसकी समझ नहीं है। वे अपनो बच्चों को भी यह समझ नहीं दे सकते हैं। उन्हें नहीं मालूम है कि कोरोना वायरस से किस तरह के खतरे हैं। यह बीमारी भी है या यह अब महामारी घोषित कर दी गयी है। राजनीतिक दल इन तक अपने चुनाव चिह्न पहुँचा देते हैं। बाकी, सबकुछ पहुँचाने में सक्षम नहीं बचते हैं। वे मदद पहुंचाने के नाम पर सत्ता में न होने का रोना रोने लगते हैं। वे निरीह और लाचार बन जाते हैं। वे मौजूदा सरकार की तरफ मुँह उठाकर देखते हैं। मौका मिलने पर कोसते हैं। बस खुद कुछ नहीं करते हैं। सरकार ने अभी तक गांवों में अस्पतालों के बारे में नहीं सोचा है। वह गाँवों में अस्पतालों के नाम पर कमरा खड़ा कर देती है। कुछ रंग पुतवा दिये जाते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लिखवा दिया जाता है। उसके बाद ताला ही पड़ा रहता है। सरकारें ऐसी समस्याएँ वि

पानी

यह मेरे मोहल्ले की तस्वीर है। मुझे नहीं मालूम कि आप इस तस्वीर को कैसे देखते हैं! हो सकता है। यह आपके लिये एक नये तरह की तस्वीर हो। या फिर, आप ऐसी तस्वीरों के आदी हों। कुछ लोग इसे जीते भी होंगे। जो जी रहे हैं, उनके साथ मेरी संवेदना है। संवेदना इसलिये है कि मैं स्वार्थी हूँ। मुझे भी ऐसे ही पानी भरना होता है। मैं 200 मीटर दूर से रोज सुबह-शाम पानी भरी बाल्टियां ढोना पसंद नहीं करता हूँ। लेकिन, ढोनी होती हैं। क्योंकि मुझे भी पानी पीना है, नहाना है, खाना है, टॉयलेट जाना है। मैंने बचपन से देखा है कि पानी पीना सरल नहीं है। मेरे गाँव में पानी पीने के लिए मेहनत करनी होती है। शायद इसीलिए मुझे पानी से प्रेम है। मुझे अनुपम मिश्र से भी बहुत प्रेम है। इसीलिये राजस्थान और बुन्देलखण्ड के लोगों के साथ मेरी संवेदना है। मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास के लोग इन मामलों में सबसे सबसे धूर्त होते हैं। उसे यह सब पढ़कर बहुत गुस्सा आता है। उसे लगता है कि कितने रोनू लोग हैं, 'घर में ही नल क्यों लगवा लेते'। उन्हें यह सब बहुत सरल लगता है। मैंने इन्हें पानी बहाते देखा है। ये मना करने पर और अधिक पानी बहाते