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पानी

यह मेरे मोहल्ले की तस्वीर है। मुझे नहीं मालूम कि आप इस तस्वीर को कैसे देखते हैं!
हो सकता है। यह आपके लिये एक नये तरह की तस्वीर हो। या फिर, आप ऐसी तस्वीरों के आदी हों। कुछ लोग इसे जीते भी होंगे। जो जी रहे हैं, उनके साथ मेरी संवेदना है। संवेदना इसलिये है कि मैं स्वार्थी हूँ। मुझे भी ऐसे ही पानी भरना होता है। मैं 200 मीटर दूर से रोज सुबह-शाम पानी भरी बाल्टियां ढोना पसंद नहीं करता हूँ। लेकिन, ढोनी होती हैं। क्योंकि मुझे भी पानी पीना है, नहाना है, खाना है, टॉयलेट जाना है।

मैंने बचपन से देखा है कि पानी पीना सरल नहीं है। मेरे गाँव में पानी पीने के लिए मेहनत करनी होती है। शायद इसीलिए मुझे पानी से प्रेम है। मुझे अनुपम मिश्र से भी बहुत प्रेम है। इसीलिये राजस्थान और बुन्देलखण्ड के लोगों के साथ मेरी संवेदना है।

मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास के लोग इन मामलों में सबसे सबसे धूर्त होते हैं। उसे यह सब पढ़कर बहुत गुस्सा आता है। उसे लगता है कि कितने रोनू लोग हैं, 'घर में ही नल क्यों लगवा लेते'। उन्हें यह सब बहुत सरल लगता है। मैंने इन्हें पानी बहाते देखा है। ये मना करने पर और अधिक पानी बहाते हैं।

पहला, लोग इतने सक्षम नहीं हैं। दूसरा, बात इतनी भर नहीं है। पानी लुढ़क रहा है। इतनी रफ्तार से, जैसे ढालदार रास्ते में साइकिल लुढ़कती है। पानी के बारे में न सोचना अपराध है। इस अपराध की सजा अवश्य मिलती है।

मैंने कुछ हिस्सों में इसे क़रीब से देखा है। यही अपराध कुछ सालों पहले बुंदेलखण्ड के महोबा जिले में किया गया था। हमीरपुर जिले में मौदहा ब्लॉक के आसपास भी किया गया था। धड़ाधड़ हैण्डपम्प लगवाये गये। लोगों को आसानी से पानी उपलब्ध हो गया। इसके बाद तालाबों को पुराना विषय मान लिया गया था। लोगों ने तालाबों को बिसराया, पानी ने उन्हें बिसरा दिया है। आज वहाँ तालाबों का न होना पानी का न होना बन गया है।
पानी से सबसे ज्यादा प्यार माटी को होता है। माटी की नाराज़गी सबको महंगी पड़ती है। नाराज माटी फसलें देने से इनकार कर देती है। उसके बाद क्या होता है?
यह जानने के लिए गर्मियों में बुन्देलखण्ड जाइये। वहाँ इसके साथ यह भी समझ आ जयेगा कि पलायन क्या होता है। लोगों का रेला लग जाता है, अपनी माटी छोड़ने के लिए। तब जाकर खबरें बनती हैं। जब लगातार खबरें टाइप होकर सरकार की आँखों में गड़ने लगती है। तब उसकी नींद खुलती हैं। लेकिन, अधिकारियों को सरकार की नींद बहुत प्यारी होती है। तुरन्त कागजों पर सब ठीक कर दिया जाता है।
सरकार और आला अफसरों की तमाम अनदेखी के बावजूद सबसे अधिक जिम्मेदार समाज के वे लोग हैं। जो लगातार पानी, माटी और प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। इसलिये सरकार जागे न जागे, आप ही जाग जाइये।

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