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रबी में 'अंध' तो खरीफ में 'कुप्प'

रबी फसल की बेहद कम मात्रा और सस्ते दाम पर हुई बिक्री ने अंधेरा पैदा किया है। तो वहीं खरीफ की फसल को लेकर स्थिति साफ न होना उसमें कुप्प भी जोड़ रहा है। दोनों ने मिलकर किसानों के लिए 'अंधाकुप्प' जैसी स्थिति बना दी है। गेहूँ की मड़ाई करते मजदूर किसानों ने खरीफ़ की फसल के लिये खेतों की जुताई शुरू कर दी है। जबकि अभी रबी की करीब 30 फीसदी फसल खेत में ही सड़ने को छोड़ दी गयी है। वेजिटेबल्स ग्रोअर्स एशोसिएशन ऑफ इंडिया(वीजीआई) का दावा है कि किसानों ने करीब 30% सब्जी खेतों में ही सड़ने को छोड़ दी है। इस बीच फलों की बिक्री में भी भारी गिरावट दर्ज की गयी है। जिससे तमाम बागान मालिकों की भी चिंता की लकीरें गाढ़ी हो गयी हैं। इसके प्रमुख कारण लॉकडाउन के चलते होटल, रेस्टोरेंट और ढाबों का बन्द होना और शहरों के लिए सब्जी और फलों का सप्लाई सिस्टम का ठप्प हो जाना। सरकार ने इसे सुलझाने के लिए अब तक कोई रास्ता नहीं निकाला है। इससे किसानों को भारी घाटा हुआ है। देश में सब्जियों और फलों की उपलब्धता में करीब 65 फीसदी हिस्सा रबी फसल का ही होता है। बाकी योगदान खरीफ फसल का है। ऐसे में रबी की पूरी फस

बबूल

तस्वीर: गौरव तिवारी जब माटी माँ होने से मना कर देती है वह रूखी और बलुई हो जाती है वह शासक बन जाती है उसे अपने ऊपर किसी का जिंदा होना सहन नहीं होता वह किसी को भी उगने नहीं देती पानी होती है जिंदा होने की निशानी इसलिए वह ख़त्म कर देती है पानी वह नहीं उगने देती है घास नहीं उगने देती है गेहूँ डर के मारे नहीं उगता है नीम बरगद और पीपल भी उगने से मना कर देते हैं जब सब मर जाते हैं वहाँ उग आता है बबूल जब ख़त्म हो रही होगी दुनिया तब उग रहा होगा बबूल - गौरव तिवारी