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क्या राज्य सरकारें केंद्र को सर्वोच्च न्यायालय ले जाने की तैयारी बना रही हैं?

केंद्र सरकार के ऊपर पहले से ही अपना लंबित बकाया चुकाने का दबाव था। लेकिन, कोरोना वायरस महामारी के चलते राज्यों में वित्तीय संकट बढ़ गया है। आय के स्रोत इन दिनों न के बराबर हैं। इससे राज्यों द्वारा लंबित बकाये के साथ विशेष पैकेज की उठी मांग से यह संकट और गहरा गया है। साल 2019-20 में केंद्र का उपकर संग्रह 95,768 करोड़ रुपये रहा है। जबकि राज्यों के लिए जारी वितरण 1,20,498 करोड़ रुपये है। केंद्र का संशोधित अनुमान कुल 98,327 रुपये था। यानी जमा रक़म अनुमान से 3000 करोड़ रुपये कम है। केंद्र सरकार के ऊपर पहले से ही अपना लंबित बकाया चुकाने का दबाव था। लेकिन, कोरोना वायरस महामारी के चलते राज्यों में वित्तीय संकट बढ़ गया है। आय के स्रोत इन दिनों न के बराबर हैं। इससे राज्यों द्वारा लंबित बकाये के साथ विशेष पैकेज की उठी मांग से यह संकट और गहरा गया है। वित्त मंत्रालय जल्द ही वस्तु एवं सेवा कर(जीएसटी) मुआवजा बकाए में से राज्यों को 20000 करोड़ रुपये की भुगतान की तैयारी कर रहा है। इसके अलावा वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय एक और प्रोत्साहन पैकेज की तैयारी कर रहे हैं। इसकी घोषणा जल्द ह
जबकि, भारत में धर्म ही सबकुछ है। यह शहर में किराये पर कमरा लेने, महरी का काम मिलने, नौकरी पाने से लेकर चुनाव जीतने तक सबमें प्रधान साबित होता है। ऐसे में धर्म पर आया संकट देश का सबसे बड़ा संकट है। रामानंद सागर 'रामायण' टीवी रूपान्तरण का मुख्य आवरण देशभर में लॉकडाउन है। मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों में ताले पड़े हुये हैं। लोगों की धर्म के प्रति आस्था को ख़तरा है। स्नोडेन बुबोनिक प्लेग फैलने का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि 'इसने इंसान के ईश्वर के साथ रिश्ते को सवालों के घेरे में ला दिया था।' महामारी से पैदा हुयी स्थितियाँ ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने लगती हैं। ऐसा सोचकर भी धर्म के ठेकेदार घबरा जाते हैं। राजनेता डरने लग जाते हैं। सत्ता डगमगाने लगती है। सरकारें भय खाने लगती हैं। जबकि सिर्फ अस्पताल खुले हैं और डॉक्टर्स काम कर रहे हैं। तब ऐसी स्थिति भी बन सकती है कि लोग धर्म पर सवाल उठाने लगें। वे इसकी जरूरत पूछ सकते हैं। भारत में धर्म ही सबकुछ है। यह शहर में किराये पर कमरा लेने, महरी का काम मिलने, नौकरी पाने से लेकर चुनाव जीतने तक सबमें प्रधान साबित होता है। उस प

महामारी और मजदूर

विश्व्यापी महामारी कोविड-19 ने दुनिया भर में भयानक स्थिति पैदा कर दी थी। तब भारत सरकार जिम्मेदारी दिखाते हुए प्रवासी भारतीयों की न केवल हर सम्भव मदद की, बल्कि उन्हें सेना विमान भेजकर भारत भी लाया गया। भारत सरकार इस मामले में तारीफ़ की हक़दार है। तस्वीर: सोशल मीडिया हम शिष्ट लोग हैं। हमें बचपन से सबका सम्मान करना सिखाया जाता है। हमें कुछ सिखाया जाता है और कुछ देखकर सीखते हैं। हमने बचपन से देखा होता है कि जितना अमीर रिश्तेदार होता है, उतना अधिक सम्मान का भोगी बनता है। अधिक दहेज लाने वाली बहू को अन्य बहुओं से अधिक सम्मान मिलता है। हम सबसे मिलकर देश बनता है। इसलिए हमारा देश भी शिष्ट है। हमारे देश में प्रवासी अतिसम्मानीय श्रेणी में आते हैं। प्रवासी हमारे देश के रिश्तेदार होते हैं। ऊपर से वो हमारी अर्थव्यवस्था में रुपया नहीं सीधे डॉलर जोड़ते हैं। वे महामारियां भी जोड़ते हैं। लेकिन, यह देश की अर्थव्यवस्था से पहले उन लोगों के जीवन से जुड़ जाती है। जिन्हें पता भी नहीं, डॉलर होता क्या है? ज्यादातर महामारियां युद्ध, व्यापार, प्रवास के जरिए फैलती हैं। महामारियां यात्रा करती हैं। यात्रा के

कोरोना वायरस और भारत

पूरी दुनिया और भारत ने अब तक के इतिहास में कई बार महामारियों का सामना किया है। जिसमें प्लेग, हैजा, चेचक और फ्लू से लेकर कोविड-19(कोरोना) तक ये महामारियां हर कुछ दशक बाद आई हैं। साथ ही, इन्होंने एक बड़े जनसमूह को बुरी तरह परेशान किया है। इस समय कोविड-19 ने विश्व भर के देशों को जमीन पर घुटने टेकने को मजबूर कर दिया है। चीन के वुहान नामक शहर से फैला यह वायरस इटली, अमरीका, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, फ्रांस समेत दुनिया भर में पसर गया है। तस्वीर: गौरव तिवारी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अभी तक कोई वैक्सीन तैयार नहीं हो पायी है। ऐसे में इससे बचाव के लिये दो बड़े उपाय उभरकर सामने आये हैं। ज्यादातर देश इन्हें अपना भी रहे हैं। कुछ देशों ने ज्यादा से ज्यादा लोगों की जाँच करवाकर इस पर काबू पाया है। तो वहीं, कुछ देशों ने लंबे लॉकडाउन के बाद इस पर काबू पाया है। भारत में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रायल के तौर पर 22 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा की। साथ ही, उसी शाम को सबसे अपने दरवाजे और बालकनी पर खड़े होकर थाली और घण्टे आदि बजाने को कहा। उन्होंने कहा, यह सब इस संकट की घड़ी में योद्धा बनकर सामने

टीवी और हम

हमें टीवी समाचार और प्रोग्राम्स देखने का तरीका बदलना होगा। हमें समझना होगा कि टीवी में जो दिखाया जा रहा है, वो सबके लिये नहीं है। इसमें उन स्थानों की खबरों और उन खबरों की तरजीह दी जाती है जो इनके उत्पादों के खरीददार पसन्द करते हैं।टीवी सिर्फ कुछ खरीददारों के लिए है। तमाम शो, धरावाहिक और प्रोग्राम्स के बीच कुछ विज्ञापन दिखाये जाते हैं। यह सब उन उत्पादों के खरीददारों के लिए ही हैं। टीवी अन्य किसी की बात नहीं करता है। अपने दिमाग पर ज़ोर डालिये और सोचिये कि आपने टीवी समाचार देखते हुये कितनी बार गाँव, फसल, किसान और पर्यावरण सम्बन्धी कुछ देखा है? ऐसा इसलिये है, क्योंकि ये सब उनके खरीददार नहीं हैं। टीवी ऐसी लोगों के लिए शो और प्रोग्राम तैयार करता है जहाँ से वो ज्यादा बड़े ऑडिएंस पर पकड़ बना सके। ऐसे में बड़े समूहों या मेज़रिटी पर ध्यान दिया जाता है। छोटे समूह या माइनरिटी पीछे छूट जाते हैं। तस्वीर: सोशल मीडिया समाचारों के बीच में दिखायी जा रही दो-एक रिपोर्ट्स उनकी मजबूरी है, मुख्य काम नहीं। इसकी फ्रीक्वेंसी भी बहुत कम होती है। क्योंकि, आपको लगातार ग्राउंड रिपोर्ट्स दिखायी जाएंगी तो आप खीज

गड्ड-मड्ड-सड्ड

सभी तस्वीरें: गौरव तिवारी इनको सोशल डिस्टेंसिंग जैसी किसी चीज से कोई मतलब नहीं है। बिना चप्पल-जूता झाड़-झंकाल में घुसे हैं। आप ही अंदाजा लगाइए कितनी साफ-सफाई रखते होंगे? सेनेटाइजिंग दूर का विषय है, साबुन से कितनी बार हाथ धुलते होंगे? ऐसा इसलिये है, क्योंकि इनके माँ-बाप को भी इसकी समझ नहीं है। वे अपनो बच्चों को भी यह समझ नहीं दे सकते हैं। उन्हें नहीं मालूम है कि कोरोना वायरस से किस तरह के खतरे हैं। यह बीमारी भी है या यह अब महामारी घोषित कर दी गयी है। राजनीतिक दल इन तक अपने चुनाव चिह्न पहुँचा देते हैं। बाकी, सबकुछ पहुँचाने में सक्षम नहीं बचते हैं। वे मदद पहुंचाने के नाम पर सत्ता में न होने का रोना रोने लगते हैं। वे निरीह और लाचार बन जाते हैं। वे मौजूदा सरकार की तरफ मुँह उठाकर देखते हैं। मौका मिलने पर कोसते हैं। बस खुद कुछ नहीं करते हैं। सरकार ने अभी तक गांवों में अस्पतालों के बारे में नहीं सोचा है। वह गाँवों में अस्पतालों के नाम पर कमरा खड़ा कर देती है। कुछ रंग पुतवा दिये जाते हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लिखवा दिया जाता है। उसके बाद ताला ही पड़ा रहता है। सरकारें ऐसी समस्याएँ वि