हमें टीवी समाचार और प्रोग्राम्स देखने का तरीका बदलना होगा। हमें समझना होगा कि टीवी में जो दिखाया जा रहा है, वो सबके लिये नहीं है। इसमें उन स्थानों की खबरों और उन खबरों की तरजीह दी जाती है जो इनके उत्पादों के खरीददार पसन्द करते हैं।टीवी सिर्फ कुछ खरीददारों के लिए है। तमाम शो, धरावाहिक और प्रोग्राम्स के बीच कुछ विज्ञापन दिखाये जाते हैं। यह सब उन उत्पादों के खरीददारों के लिए ही हैं। टीवी अन्य किसी की बात नहीं करता है। अपने दिमाग पर ज़ोर डालिये और सोचिये कि आपने टीवी समाचार देखते हुये कितनी बार गाँव, फसल, किसान और पर्यावरण सम्बन्धी कुछ देखा है?
ऐसा इसलिये है, क्योंकि ये सब उनके खरीददार नहीं हैं।
टीवी ऐसी लोगों के लिए शो और प्रोग्राम तैयार करता है जहाँ से वो ज्यादा बड़े ऑडिएंस पर पकड़ बना सके। ऐसे में बड़े समूहों या मेज़रिटी पर ध्यान दिया जाता है। छोटे समूह या माइनरिटी पीछे छूट जाते हैं।
समाचारों के बीच में दिखायी जा रही दो-एक रिपोर्ट्स उनकी मजबूरी है, मुख्य काम नहीं। इसकी फ्रीक्वेंसी भी बहुत कम होती है। क्योंकि, आपको लगातार ग्राउंड रिपोर्ट्स दिखायी जाएंगी तो आप खीज जायेंगे। चिड़चिड़ा उठेंगे। गुस्से से भर जाएंगे। ऐसे में आपको उन प्रोग्राम्स के बीच में दिखाये जाने वाले विज्ञापन अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते हैं। वे आपको बाइंग मूड में ढकेलने में असफल रहते हैं।
टीवी प्रोग्राम्स का मुख्य काम है आपके मूड को हैप्पी रखना। ताकि, आपको आसानी से उत्पादों की ओर आकर्षित किया जा सके। आपको समाचारों के नाम पर संगीत सुनाये जाते हैं। आपको सुंदर और चमकदार चेहरे दिखाये जाते हैं। आपको बता दिया जाता है कि कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में टीवी चैनलों को सिर्फ आपकी चिंता है। आपकी फ़िक्र है। वे आपके अपने बन जाते हैं। फिर आपको सोफे, बेड, और बिस्तर पर चिल्ल करने को कहते हैं। जैसे ही आप चिलिंग मोड में जाते हैं। तुरंत ऐड ठूँस दिये जाते हैं।
पीछे लौटिये। आपको महाराष्ट्र के उन किसानों के खून से सने तलवे दिखाने की जगह मोहम्मद शमी और उनकी पत्नी का झगड़ा दिखाया जा रहा था। आज आपको असल स्वास्थ्य व्यवस्था, पलायन कर रहे मजदूरों की असली हक़ीक़त के बजाय अंताक्षरी और सेलिब्रिटीज के वीडियो दिखाये जा रहे हैं। समझना दर्शकों को ही है। वे अपना काम कर रहे हैं।
आप भी संभलकर टीवी देखें। दूसरों को भी देखना सिखाएं।
ऐसा इसलिये है, क्योंकि ये सब उनके खरीददार नहीं हैं।
टीवी ऐसी लोगों के लिए शो और प्रोग्राम तैयार करता है जहाँ से वो ज्यादा बड़े ऑडिएंस पर पकड़ बना सके। ऐसे में बड़े समूहों या मेज़रिटी पर ध्यान दिया जाता है। छोटे समूह या माइनरिटी पीछे छूट जाते हैं।
तस्वीर: सोशल मीडिया |
समाचारों के बीच में दिखायी जा रही दो-एक रिपोर्ट्स उनकी मजबूरी है, मुख्य काम नहीं। इसकी फ्रीक्वेंसी भी बहुत कम होती है। क्योंकि, आपको लगातार ग्राउंड रिपोर्ट्स दिखायी जाएंगी तो आप खीज जायेंगे। चिड़चिड़ा उठेंगे। गुस्से से भर जाएंगे। ऐसे में आपको उन प्रोग्राम्स के बीच में दिखाये जाने वाले विज्ञापन अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते हैं। वे आपको बाइंग मूड में ढकेलने में असफल रहते हैं।
टीवी प्रोग्राम्स का मुख्य काम है आपके मूड को हैप्पी रखना। ताकि, आपको आसानी से उत्पादों की ओर आकर्षित किया जा सके। आपको समाचारों के नाम पर संगीत सुनाये जाते हैं। आपको सुंदर और चमकदार चेहरे दिखाये जाते हैं। आपको बता दिया जाता है कि कोरोना वायरस संक्रमण के दौर में टीवी चैनलों को सिर्फ आपकी चिंता है। आपकी फ़िक्र है। वे आपके अपने बन जाते हैं। फिर आपको सोफे, बेड, और बिस्तर पर चिल्ल करने को कहते हैं। जैसे ही आप चिलिंग मोड में जाते हैं। तुरंत ऐड ठूँस दिये जाते हैं।
पीछे लौटिये। आपको महाराष्ट्र के उन किसानों के खून से सने तलवे दिखाने की जगह मोहम्मद शमी और उनकी पत्नी का झगड़ा दिखाया जा रहा था। आज आपको असल स्वास्थ्य व्यवस्था, पलायन कर रहे मजदूरों की असली हक़ीक़त के बजाय अंताक्षरी और सेलिब्रिटीज के वीडियो दिखाये जा रहे हैं। समझना दर्शकों को ही है। वे अपना काम कर रहे हैं।
आप भी संभलकर टीवी देखें। दूसरों को भी देखना सिखाएं।
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