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जबकि, भारत में धर्म ही सबकुछ है। यह शहर में किराये पर कमरा लेने, महरी का काम मिलने, नौकरी पाने से लेकर चुनाव जीतने तक सबमें प्रधान साबित होता है। ऐसे में धर्म पर आया संकट देश का सबसे बड़ा संकट है।

रामानंद सागर 'रामायण' टीवी रूपान्तरण का मुख्य आवरण


देशभर में लॉकडाउन है। मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों में ताले पड़े हुये हैं। लोगों की धर्म के प्रति आस्था को ख़तरा है। स्नोडेन बुबोनिक प्लेग फैलने का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि 'इसने इंसान के ईश्वर के साथ रिश्ते को सवालों के घेरे में ला दिया था।' महामारी से पैदा हुयी स्थितियाँ ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने लगती हैं।


ऐसा सोचकर भी धर्म के ठेकेदार घबरा जाते हैं। राजनेता डरने लग जाते हैं। सत्ता डगमगाने लगती है। सरकारें भय खाने लगती हैं। जबकि सिर्फ अस्पताल खुले हैं और डॉक्टर्स काम कर रहे हैं। तब ऐसी स्थिति भी बन सकती है कि लोग धर्म पर सवाल उठाने लगें। वे इसकी जरूरत पूछ सकते हैं।


भारत में धर्म ही सबकुछ है। यह शहर में किराये पर कमरा लेने, महरी का काम मिलने, नौकरी पाने से लेकर चुनाव जीतने तक सबमें प्रधान साबित होता है। उस पर आया संकट देश का सबसे बड़ा संकट है।

भारत में कोरोना वायरस का संकट गहराने के साथ सरकार ने रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक धारावाहिकों का प्रसारण शुरू कर दिया।
दिन में दो घण्टे रामायण आती है। दो घण्टे महाभारत भी आती है। गाँव में आज भी हर घर में टेलीविजन नहीं होता है। पण्डित जी के घर में टीवी है। भीड़ जुटती है। गाँव में आप लॉकडाउन में भी किसी को घर आने से रोक नहीं सकते हैं। लोग आहत हो जाते हैं। लेकिन, भीड़ केवल रामायण देखने के लिए जुटती है। महाभारत देखने के लिए नहीं जुटती है। रामायण में सब आदर्श स्थितियाँ दिखायी जाती हैं। यह किसी के भीतर की दुष्टता को नहीं कुरेदती है। महाभारत देखने में ऐसा बार-बार होता है। लोग इसे देखने से बचते हैं।


गाँवों में बिजली 24 घण्टे नहीं आती है। आज रामायण शुरू होने से पहले ही बिजली चली गयी। 'चले जाना' विरह का कारण बनता है। विरह दुःख देता है। दुःख कमजोर बना देता है। कमजोरी में क्रोध बहुत आता है। पण्डित जी के घर रामायण देखने आये दूसरे पण्डित जी भी बिजली जाने की विरह वेदना सह न सके। वे भड़क उठे। चूँकि, कमजोर आदमी अपने से कमजोर पर ही क्रोध करता है। वे बिजलीघर में काम करने वाले इलेक्ट्रीशियन्स को आड़े हाथों लेने लगे। वे कहने लगे, 'यहाँ सब नीच जाति के लोग ही काम करते हैं। उन्हें रामायण आदि का कोई ज्ञान नहीं। ये ....., .....(जातियों के नाम) सब ज़ाहिल होते हैं। पढ़े-लिखे होते तो ऐसा न करते...'
मौका देखकर उन्होंने लगे हाथ रामचरित मानस की चौपायी भी कह दी, 'ढोल गंवार शूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी'

पण्डित जी में गजब की कर्त्तव्यनिष्ठा, धर्मपरायणता और देशप्रेम है। उन्होंने 5 तारीख को दीपक भी जलाया था। आज उन्होंने सरकार से एक कदम आगे बढ़ाकर धर्म के साथ-साथ जातियों को भी भयमुक्त कर दिया है।
राजनेताओं का डर दूर हो गया है। सत्ता स्थिर हो गयी है। अब सरकार सुरक्षित है।

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