मुझे नहीं मालूम आपलोगों की नज़र में गाँव की परिभाषा क्या है?
जिस गाँव में मैं रहता हूँ। जो गाँव मैंने देखे हैं। वे बहुत सुंदर नहीं होते हैं। वे अभावों का एक विशाल संसार होते हैं। इन गाँवों में पानी की व्यवस्था, बिजली, सड़क, नाली, स्कूल, अस्पताल, रोजगार, सवारीगाड़ी, इंटरनेट, लाइब्रेरी यह सब या तो न के बराबर है, या है ही नहीं।
इन गांवों के समाज जातिवाद, धर्मवाद, लिंगभेद आदि से ग्रस्त, बीमार, घटिया और भद्दे होते हैं। इन गाँवों में आज भी लोग डोम समाज के लोगों को छू लेने पर शुद्धि के लिये स्नान करते हैं। वहीं भैंस, बकरी, गाय, कुत्ता, बिल्ली जानवर हैं। इनको छूने से कोई अशुद्धि नहीं होती है। मैं इतनी भद्दी तुलना के लिये माफी चाहता हूँ। लेकिन, यह सच है। मैं रोज इससे उबरने की कोशिश करता हूँ। बावजूद इसके, मेरे भीतर इन गांवों के बड़े हिस्से जिंदा हैं।
जाड़ा, गर्मी, बरसात, धूप, धूल, दिन, रात खेत में खपे रहने के बाद भी किसान हमारा हीरो नहीं होता है। वह पहले अभावों में घिसटता है। फिर मार दिया जाता है। उसे दुश्मन गोली से नहीं मारते हैं। उसे हमलोग मार देते हैं। बच जाने पर आत्महत्या कर लेता है वो। वह कभी जिंदा नहीं रहता है।
डेयरी गाँवों में घुस आयी हैं। गाँव के लोग अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। यहाँ ज्यादा आबादी छोटे किसानों और छोटे पशुपालकों की होती है। इसलिए घरों का सारा दूध डेयरी पहुँच जाता है। ये पौष्टिक आहार के नाम पर कुछ भी ढंग का नहीं खा पाते हैं।
तस्वीरों में गाँव बहुत सुंदर और खूबसूरत दिखते हैं। तस्वीरों में जर्मनी के यातनागृह भी बहुत खूबसूरत दिखते थे। तमाम वीभत्स और घटिया चीजें तस्वीरों में सुंदर दिखती हैं।
गाँव ख़ूबसूरत नहीं होते हैं।
खेत में बैठी दो बच्चियाँ |
जिस गाँव में मैं रहता हूँ। जो गाँव मैंने देखे हैं। वे बहुत सुंदर नहीं होते हैं। वे अभावों का एक विशाल संसार होते हैं। इन गाँवों में पानी की व्यवस्था, बिजली, सड़क, नाली, स्कूल, अस्पताल, रोजगार, सवारीगाड़ी, इंटरनेट, लाइब्रेरी यह सब या तो न के बराबर है, या है ही नहीं।
इन गांवों के समाज जातिवाद, धर्मवाद, लिंगभेद आदि से ग्रस्त, बीमार, घटिया और भद्दे होते हैं। इन गाँवों में आज भी लोग डोम समाज के लोगों को छू लेने पर शुद्धि के लिये स्नान करते हैं। वहीं भैंस, बकरी, गाय, कुत्ता, बिल्ली जानवर हैं। इनको छूने से कोई अशुद्धि नहीं होती है। मैं इतनी भद्दी तुलना के लिये माफी चाहता हूँ। लेकिन, यह सच है। मैं रोज इससे उबरने की कोशिश करता हूँ। बावजूद इसके, मेरे भीतर इन गांवों के बड़े हिस्से जिंदा हैं।
जाड़ा, गर्मी, बरसात, धूप, धूल, दिन, रात खेत में खपे रहने के बाद भी किसान हमारा हीरो नहीं होता है। वह पहले अभावों में घिसटता है। फिर मार दिया जाता है। उसे दुश्मन गोली से नहीं मारते हैं। उसे हमलोग मार देते हैं। बच जाने पर आत्महत्या कर लेता है वो। वह कभी जिंदा नहीं रहता है।
डेयरी गाँवों में घुस आयी हैं। गाँव के लोग अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। यहाँ ज्यादा आबादी छोटे किसानों और छोटे पशुपालकों की होती है। इसलिए घरों का सारा दूध डेयरी पहुँच जाता है। ये पौष्टिक आहार के नाम पर कुछ भी ढंग का नहीं खा पाते हैं।
तस्वीरों में गाँव बहुत सुंदर और खूबसूरत दिखते हैं। तस्वीरों में जर्मनी के यातनागृह भी बहुत खूबसूरत दिखते थे। तमाम वीभत्स और घटिया चीजें तस्वीरों में सुंदर दिखती हैं।
गाँव ख़ूबसूरत नहीं होते हैं।
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